Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 87
________________ (१9) कोटिशिला-सिद्धक्षेत्र (उड़ीसा) जल-फल वसु-दरव पुनीत, लेकर अर्घ करूँ | नाचूँ गाऊँ इह भाँति, भवतर मोक्ष वरूँ || श्री कोटिशिला के माँहि, जशरथ-तनय कहे | मुनि पंच-शतक शिवलीन, देश-कलिंग दहे || ओं ह्रीं श्री कोटिशिला-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा | (२०) तारंगागिरि-सिद्धक्षेत्र (गुजरात) शुचि आठों द्रव्य मिलाय तिनको अर्घ करूं | मन-वच-तन देहु चढ़ाय भव तर मोक्ष वरूं || श्री तारंगागिरि से जान, वरदत्तादि मुनी | त्रय-अर्ध-कोटि परमान ध्याऊँ मोक्ष-धनी || ओं ह्रीं श्री तारंगागिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । (२१) श्री गौतम-गणधर निर्वाण-स्थली (गुणावा-बिहार) जल-फल आदिक द्रव्य इकट्ठे लीजिये | कंचन-थारी माँहि अरघ शुभ कीजिये || ग्राम-गुणावा जाय सु मन हर्षाय के | गौतम-स्वामी-चरण जजो मन-लायके || ओं ह्रीं श्री गौतम-गणधर निर्वाण-स्थली गुणावा-सिद्धक्षेत्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 87

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