Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ (१३) चूलगिरि (बावनगजा) सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) सजि सौंज आठों होय ठाड़ा, हरष बाढ़ा कथन-बिन | हे नाथ! भक्तिवश मिले जो, पुर न छूटे एक दिन || दशग्रीव-अंगज अनुज आदि, ऋषीश जहँ तें शिव लह्यो | सो शैल बड़वानी-निकट, गिरि-चूल की पूजा ठहो || ओं ह्रीं श्री चूलगिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । (१४) श्री गजपंथ-सिद्धक्षेत्र (महाराष्ट्र) जल-फल आदि वसु-दरव अति-उत्तम, मणिमय-थाल भराई | नाच-नाच गुण गाय-गायके, श्री जिन-चरण चढ़ाई || बलभद्र सात वसु-कोडि मुनीश्वर, यहाँ पर करम खिपाई | केवल-लहि शिवधाम पधारे, जजू तिन्हें सिर-नाई || ओं ह्रीं श्री गजपंथ-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । (१५) श्री मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) जल-गंध आदिक द्रव्य लेके, अर्घ कर ले आवने | लाय चरन चढ़ाओ भविजन, मोक्षफल को पावने || तीर्थ-मुक्तागिरि मनोहर, परम-पावन शुभ कह्यो | कोटि साढ़े तीन मुनिवर, जहाँ तें शिवपुर लह्यो || ओं ह्रीं श्री मुक्तागिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 85

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116