Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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(१०) श्री शत्रुजय-सिद्धक्षेत्र (गुजरात) वसु-द्रव्य मिलाई, थार भराई, सन्मुख आई नजर करूं | तुम शिव सुखदाई, धर्म बढ़ाई, हर दुःखादिक अर्घ करूं || पांडव शुभ तीनं, सिद्धि लहीनं, आठ कोड़ि मुनि मुक्ति गये |
श्री शत्रुजय पूजू, सन्मुख हूजो, शांतिनाथ शुभ मूल नये || ओं ह्रीं श्री शत्रुजय-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
(११) श्री तुंगीगिरि सिद्धक्षेत्र (महाराष्ट्र) जल-फलादि वसु दरव सजा के, हेम-पात्र भर लाऊँ | मन-वच-काय नमूं तुम चरना, बार-बार सिर नाऊँ || ___ राम हनू सुग्रीव आदि जे, तुंगीगिर थिर-थाई |
कोड़ी निन्यानवे मुक्ति गये मुनि, पूजूं मन-वच-काई || ओं ह्रीं श्री तंगीगिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
(१२) श्री कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र (महाराष्ट्र) जल-फलादि वसु-दरव लेय थुति ठान के | अर्घ धरूँ तुम पाप हरो हिय आन के |
पूजू सिद्ध सु क्षेत्र, हिये हरषाय के |
कर मन-वच-तन शुद्ध, करम-वसु टार के || ओं ह्रीं श्री कुंथलगिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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