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श्रीमहावीर जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी) अपने स्वभाव के साधन का विश्वास नहीं आया अब तक। सिद्धत्व स्वयं से आता है आभास नहीं पाया अब तक।।
भावों का अर्घ चढ़ाकर मैं अनुपम पद पाने आया हूँ।।
हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ।।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री पार्श्वनाथ-जिन नीर गंध अक्षतान् पुष्प चारु लीजियै |दीप धूप श्रीफलादि अर्घ तें जजीजियै || पार्श्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा |दीजिए निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ||
ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
श्री पार्श्वनाथ-जिन पूजा ( 'पुष्पेन्दु') । पथ की प्रत्येक विषमता को, मैं समता से स्वीकार करूँ | जीवन-विकास के प्रिय-पथ की, बाधाओं का परिहार करूँ ||
मैं अष्ट-कर्म-आवरणों का, प्रभुवर! आतंक हटाने को |
वसु-द्रव्य संजोकर लाया हूँ, चरणों में नाथ! चढ़ाने को || ओं ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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