Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ श्री आदिनाथजिन न-पूजन (चाँदखेड़ी) ( रचयिता - रूपचन्द जैन ) बारह भावना भाता हूँ कि, मरण समाधि मैं पाऊँ। अर्पित करके रूप अर्घ, मम आत्मज्ञान को प्रगटाऊँ ।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्री आदिनाथ जिन-पूजा (रानीला) ( रचयिता - ताराचन्द प्रेमी ) मन और वचन है वीतराग, प्रभु अष्ट द्रव्य से अर्घ्य बना। पावन तन-मन, है भाव शुद्ध, चरणों में अर्पित, नेह बढ़ा || अनन्त सुख प्राप्त मुझे विश्वास हृदय में लाया हूँ। तेरे चरणों की पूजा से मैं परम पदारथ पाने आया हूँ। हे अतिशयकारी ऋषभदेव ! मेरे अन्तर में वास करो । हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य - प्रकाश भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 63

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116