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श्रीपद्मप्रभ जिन-पूजा ( बाड़ा) ( रचयिता - छोटे लाल)
जल चन्दन अक्षत पुष्प, नेवज आदि मिला।
मैं अष्ट द्रव्य से पूज, पाऊं सिद्ध शिला।। बाड़ा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही। का सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही ॥
ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्य पद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
श्रीचन्द्रप्रभ जिन-पूजा (तिजारा जी) ( रचयिता - श्री मुंशी ) जल चन्दन अक्षत पुष्प चरू, दीपक घृत भर लाया हूँ। दस गंध धूप फल मिला अर्घ ले, स्वामी अति हरषाया हूँ।। हे नाथ अनर्घ्य पद पाने को, तेरे चरणों में आया हूँ।
भव-भव के बंध कटे प्रभुवर, यह अरज सुनाने आया हूँ।।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
श्री चन्द्रप्रभ जिन-पूजा (सोनागिर ) ( रचयित्री - आर्यिका स्वस्ति मति) बाधाओं का पथ मिला मुझे, प्रभु तुम तक पहुँच न पाता हूँ।
जग की झंझट उलझाती है, हर पीड़ा को सह जाता हूँ ।।
पाऊँ अनर्घ्य पद हे प्रभुवर, अर्यों का थाल मैं ले आया।। सच्ची श्रद्धा सम्यग्दर्शन, पाने को यह मन ललचाया।।
ॐ ह्रीं सोनागिर - विराजित - चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
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