Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 64
________________ श्री आदिनाथ जिन-पूजा (साँगानेर) (रचयिता - लालचन्द जी राकेश) जल चन्दन अक्षत पुष्प चरु यह दीप धूप फल लाया हूँ। पद अनर्घ मिल जाय मुझे, यह अर्घ समर्पित करता हूँ।। साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है। ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री आदिनाथ जिन-पूजा (अयोध्या) (रचयिता - कल्याण कुमार शशि) ये दुर्दमनीय कलुषताएँ, जो क्षमताएँ हर लेती हैं। मेरी अर्हन्त अवस्था को, जो प्रकट न होने देती हैं।। अपने चिन्तामणि-चेतन को, मैं बिखरा-बिखरा पाता हूँ। आठों दुःख-कर्म नशाने को, आठों शुभ-द्रव्य चढ़ाता हूँ।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। श्री आदिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - नंदन कवि) पावन जल चंदन अक्षत पुष्पन चरुवर दीपन धूप धरो। ___ वर अर्घ उतारों तुमपद धारों नंदन तारों पूज करों।। प्रथम सु तीर्थंकर, जगत हितंकर, हे अभयंकर, आदि जिनं। सब कर्म क्षयंकर, दया धुरंधर, जगजन शंकर शर्म घन।। ऊँ ह्रीं श्रीवृषभनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 64

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