Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 60
________________ श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन निज आत्म वैभव का अतिशय, नाथ बतला दीजिये। मम अघ्ञ को स्वीकार लो प्रभु, ज्ञानधार बहाइये।। हे नाथ मुनिसुव्रत हमारे, पूर्ण व्रत कर दीजिये। सब कष्ट बाधायें मिटा भव-सिंधु पार उतारिये।।।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री नमिनाथ जिन सारे पद जग के झूठे हैं शाश्वत ना मिट जाते हैं। शिवपद ही मन को भाया प्रभु तुम सा कहीं न पाते हैं।। मद का काम नहीं शिवपथ में मम मद पूर्ण विनाश करो। नमिनाथ प्रभ दर्शन देकर, ज्ञान वेदी पर वास करो। ऊँ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री नेमिनाथ जिन कर्म शक्ति को क्षय करने प्रभु, चरण शरण में आया। ध्रुव अनर्घपद पाने का अब, अपूर्व अवसर आया।। नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना। एक अकेला भटक रहा हूँ, शिवपथ मुझको दिखाना।।।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 60

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