________________
श्री सुविधिनाथ जिन जग में सबका मूल्य, आप अनमोल हैं।
अनर्घ्य पद पाने को जिनवर ठोर हैं।। सुविधिनाथ जिनराज शरण में आ गया।
करुणासागर दयासिंधुमन भा गया।। ऊँ ह्रीं श्रीसुविधिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री शीतलाथ जिन शुभ अर्घ्य बनाकर ईश, चरणों में लाये। भक्तों के भाव मुनीश, आप समझ जाये।।
शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी।
है अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री श्रेयांसनाथ जिन स्वानुभूति दिव्य अर्घ्य आपके समीप हैं। क्या चढ़ाऊँ नाथ अर्घ्य आपको विदित है।।
थ्सद्ध पद के हेतु प्रभु आ गया शरण।
हे श्रेयनाथ दर कीजिये जनम मरण।।..॥ ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
56