Book Title: Jin Samasta Ardhyavali Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 52
________________ si Purnmati mati Ji श्री आदिनाथ जिन मेरे पास नहीं कुछ स्वामी, कैसे अध्य बनाऊँगा। आतम धन से निर्धन हूँ मैं, अब तुम सम बन जाऊँगा।। आदीश्वर जिनराज आज यदि, अपना भक्त बनाओगे। सच कहता हूँ शीघ्र मुझे भी, सिद्धालय में पाओगे।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री अजित जिन अबतक कई अर्घ्य चढ़ाये, प्रभु एक नहीं मन भाये। वसु द्रव्य चढ़ा प्रभु आगे, यह दास चरण सिर नाये।।। श्री अजितनाथ जिनराजा, मेरे उर माहिं समा जा। यहाँ कोई नहीं सहारा, प्रभु तारण तरण जहाजा । श्रीअजितनाथजिनेन्दाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री संभवनाथ जिन पर द्रव्यों की अभिलाषा, अब तक भायी है। आतम अनर्घ्य की बात, नहीं सुहायी है।। हे करुणा के अवतार, संभव जिन स्वामी। दो शाश्वत सुख हिकार, हे अंतर्यामी ।।।। ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजिनेन्द्रायअनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 52

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