Book Title: Jeev Vichar Prakaran
Author(s): Manitprabhsagar
Publisher: Manitprabhsagar

Previous | Next

Page 16
________________ SHETRIBERSISTERBER जीव विचार प्रकरण BENERSHE परिभ्रमणशील और संसरणशील संसार में जीव की विकास यात्रा कहाँ से प्रारंभ होती है, उसका क्रमिक विकास कैसे होता है और अपने अंतिम लक्ष्य साध्य सिद्धतत्व को वह कैसे उपलब्ध होता है, इसका क्रमबद्ध, युक्तियुक्त विवेचन इस जीवविचार प्रकरण में है। प्रस्तुत प्रकरण की द्वितीय गाथा से ही जीव के भेद-प्रभेद और स्वरूप का विशद विवेचन प्रारंभ हो जाता है। जीव का अंतिम पडाव सिद्धशिला पर स्थित होना है तो इसका प्रारंभिक निवास स्थान निगोद है। जीव की यात्रा निगोद से ही प्रारंभ होती है और सिद्ध न बने, वहाँ तक अविरतअविराम चलती है। बल्कि यों कहा जाय तो ज्यादा युक्तियुक्त होगा कि निगोद से पहले कुछ नहीं और सिद्ध बनने के बाद भी कुछ नहीं। ये दोनों ही अवस्थाएँ एक रस्सी के दो किनारों की तरह है। पहला किनारा निगोद है तो अंतिम किनारा मुक्ति। जब एक जीव सिद्धत्व को उपलब्ध होता है तो एक जीव निगोद रूप अव्यवहार राशि से निकलकर व्यवहार राशि में प्रविष्ट होता है। तथा साधारण वनस्पति की सूक्ष्मतम अवस्था से स्थूल अवस्था को प्राप्त करता है। पांच स्थावर काय रूप एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के योग्य शरीर को धारण करता है। : इस परिभ्रमण में भव्य जीव जब शुक्लपक्षी होकर सुलभ बोधि बनता है तब प्रयत्नपूर्वक सिद्धतत्व की दिशा में गतिशील बनता है। वह आत्मा क्रमशः गुणस्थानकों में चढता हुआ, गुणश्रेणी का आरोहण कर जब समस्त कर्मपुद्गलों को अपनी आत्मा से निर्जरित कर देता है तब सिद्धत्व, बुद्धत्व और परम शुद्धत्व को उपलब्ध हो जाता है। निगोद से सिद्ध बनने तक का प्रबल पुरूषार्थ जीव की तलहटी से शिखर तक पहुँचने की साहस भरी यात्रा है।। .:51 गाथाओं से युक्त जीवविचार प्रकरण भले ही लघुकाय है परंतु इसकी विषय वस्तु इतनी विशद और विस्तृत है कि इस पर जितना लिखा जाय, उतना कम है। प्रस्तुत प्रकरण में जीव के सूक्ष्म भेद से लेकर उनके स्वरूप, आयुष्य, प्राण, योनि और स्वकाय स्थिति आदि का सांगोपांग विवेचन किया गया है। इसके अध्ययन से जैनदर्शन और तत्त्वज्ञान का मौलिक परिचय आसानी से हो जाता है। . अनुज मुनि मनितप्रभसागरजी म. ने जीवविचार प्रकरण का सार्थ हिन्दी विवेचन -

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 310