Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 30
________________ 16 ] No. 2 Author Size Extent -SHUBH CHANDRA -10" 41". - 49 Folios, 8 lines per page, 35 letters per line. Description Country paper, thin and greyish; Devanagari characters in small, legible and elegant hand-writing; borders ruled in two lines, yellow pigment used; the edges of first and last folio worn out; the condition of the manuscript on the whole is satisfactory; it is a complete work. Age Subject Begins Ends PARSVAKAVYA PANJIKA Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur -Fairly old -KAVYA - श्री जिनायनमः श्री पार्श्व पार्श्वमानस्य सुपार्श्व - निहितोत्तमम् । पद वैपम्य-संभेत्रों वक्ष्ये तत्काव्य पंजिकाम् ॥ १ ॥ - - श्रीमूलसंघेऽजनि नंदिसंघस्तत्राभवच्छ सकलादिकीर्तिः । शास्त्रार्थंकारी खलु तस्य पट्टे भट्टारकः श्री भूवनादिकीर्तिः ॥ १ ॥ तत्पट्टोदय पर्वते रविरभूत् श्री ज्ञानभूषो यतिः मिथ्यामार्ग महान्धकार तरणिश्चरित्र चूडामणिः । सम्यक् स्वीकृत शास्त्र सद्व्रतभरः सच्छामलीलायुतः पायाद्वो भवदुःखतस्त्रिजगति प्रख्यातनामा मुनिः ॥ २॥ प्रकटतत्पादपंकजभानूमान् सकलतार्किकवंदित पद्य ुगः । विजयकीर्ति गुसीगण सागरः स भवताम व्रताधतिनायकः ॥ ३॥ तदीय-पट्ट पर्वत - प्रचण्ड-चण्डदीधिति: स्फुरवशाः सुधीधनः कृपापरः परोदयः । सुतव्य-भव्य-गद्य-पद्य गीति-रीति वेदक: सुशोभचन्द्र सन्मुनिरेणाधिपः पुनातु नः ॥४॥ वादविद्या विनोदेन रञ्जितानेक भूपति । सोभद्रः मे श्रियं देयाद्वाचा तर्पित सज्जनः ॥५॥ " विजित वादिगणो गत्मत्सरः सकल सूरिगुणोदय सुन्दरः । शममयः सुकुलः सुविदांवरः सुशुभचन्द्र गुरुगु णवंधुरः ||६|| दुर्व्याख्येदं मंदवीभिः पार्श्वकाव्यं सुभाकरम् । मत्वेति मतिमांस्तस्य पंजिकामकरोद्गरिण ॥७॥ '

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