Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 81
________________ Pandya Lunkaran Jain Temple Granth Bhandar No. i Author Size Extent Description Date of the Copy Subject Begins Ends No 2 Author ANANTA JIN VRITA PUJA -BHATTARAKA GUNA CHANDRA -10" X 63" -59 Folios, 11 lines per page, 28 to 30 letters per line. Country paper, rough and greyish; Devanagari characters in big, legible, bold and good hand-writing; borders ruled in two lines in red in; condition on the whole good; it is a complete work written, in Sanskrit. - V. S. 1633 -PUJA - श्री सर्वज्ञं नमस्कृत्य सिद्ध साधू अनन्तन्नत मुखस्य पूजां कुव -इत्यनंतविधेः पूजां व्यरचद् गुणचन्द्रकः । श्लोक : सप्तशती पंचसप्तत्यूना यतीश्वरः ।। १ । संवत् षोडषत्रिशत्रेष्य फल के पक्षे भवदाते तिथो पक्षत्यां गुरुवासरे पुरुजिनेट् श्री शाकमाग पुरे । श्रीमद्हुम्डवंश पद्म सविता हर्षाख्यदूर्गी वणिक् सोयं कारितवाननंत जिनसत्पूजां वरे वाग्वरे ॥। २ ।। श्रीमूल संघविघाति नहि प्रद्योतमानेऽन्यमतानि नेशुः । सारस्वतो गच्छ इहैव नंद्यात् श्री मद्बलात्कारगरण भियुक्त ।। ३ ।। श्री रत्नकीर्ति भगवज्जगतां वरेण्यश्चारित्ररत्ननिवहस्य बभार भारम् । स्त्रिधा पुनः । Ref. No. 1.23 [ 67 यथाक्रमम् ॥ १ ॥ JAMBHU SWAMI CHARITRA --BRAHM JINDAS तद्दीक्षितो यतिवरो यश कीर्ति कीर्तिश्चारित्र रंजितजनोद्वाहिता सुकीर्तिः ।। ४ ।। ' तच्छिष्यो गुणचन्द्रसरिरभवच्चारित्र चेतोहर - स्तेनेदं वरपूजनं जिनवरानन्तस्य येऽत्र ज्ञानविकारिलो यतिवरास्तं नद्यादारविचंद्रमक्षयतरं संघस्य युक्त्याऽरचि । शोध्यमेतद्ध वं मांगल्यकृत ॥ ५ ॥ इत्याचार्यगुण चन्द्रविरचिता श्री अनन्तनाथ जिनपुजा उद्यापन सहिता समाप्ता ।

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