Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 108
________________ 94 ] Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur Description --Country paper, thin and greyish; Devanagari characters in .. big, bold, clear and beautiful hand-writing; the numbered sides marked with one small circular dise in the Centre; . the numbered having over and above this two more, onė *** in each margin, the fourth fol. badly damaged; borders ruled in three lines in red-ink and both sides corner also ruled in two lines in red ink; manuscript contains only: the translation of the Saptavyasan of Sanskrit; Condition of the manuscript is good; it is a complete work, written in Hindi prose: Date of the Copy -V. S. 1529 Subject .... --CHARITRA Begins -ॐ नमः ॥ श्री वीतरागाय नमः । अथ सप्तव्यसन चरित्र लिख्यते । श्री सोमकोति भट्टारक के संस्कृत ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद ।। ग्रन्थ की आदि । में अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह रहित तथा संसारी जीवों के लिए उनकी अभिलाषा के अनुसार मनोरथ के पूर्ण करने वाली श्री पञ्च परमेष्ठी को .. कल्याण की परम्परा की लता और जिन भगवान के मुख कमल से उत्पन्न.. हुई श्री शारदा देवी को तथा गुरुओं के पदपंकज को सप्रमोद भक्ति पूर्वक नमस्कार करके जीवों के सुख के लिए अपनी बुद्धि के अनुसार सप्तव्यसन के लिखने का प्रारम्भ करता हूं। उन व्यसनों के नाम ये हैं-जूया का : : खेलना, मांस का खाना, मदिरा का पीना, वेश्याओं का सेवन करना, :.:. शिकार का खेलना, चौरी करना, तथा पराई स्त्रियों के साथ व्यभिचार - करना। इन सातों व्यसनों में एक-एक व्यसन के सेवन से जिन-जिन ... लोगों ने अनेक तरह के दुःख भोगे हैं उन्हीं का विशेष चारित्र कहने की मेरी इच्छा है। Ends -कुगति बहन गुन गहन दहन दावानल सी है । सुजस चन्द्र धन घटा कृश करन खई है ।। .. घनदसोख न धूप धरम दिन . साऊ ।... विपति भूजंग निवास वाँ बई वेद बखानी॥ इह विध अनेक और गुनभरी प्रोन हरन फांसी प्रबल मत करहूं मित्र, यह जान जिय पर वनिता सु प्रतिफल ।।...

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