Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 106
________________ 92 ] No. 7 Author Size Extent Date of the Copy Subject Begins Jain Granth Bhandars In Jaipur. & Nagaur Ref. No. 553: - 10 Folios, 11 lines per page, 50 letters per line. Description Country paper, rough and greyish; Devanagari characters in big, bold and clear hand-writing; borders ruled in two lines in black ink; condition of the manuscript is good; the work is complete, written in Sanskrit: and Hindi. ROHINI VRITODHYAPANA ---KESAVASEN –12”×57” Ends -Fairly old -VRITA VIDHAN --ॐ नमः सिद्ध ेभ्यः ॥ श्री जिनायनमः ॥ अथ रोहिणी नक्षत्र नामाकित व्रतमण्डल विधान लिख्यते । प्रथमं मंगल वाचकं काव्यं ॥ वितराग जिनाजगदीश्वराः, परमदेव निकाय, निशेविता । सकला जन्तु महाकरुरणा करा, व्रतवतां वितरतु सुमंगला ॥ एवं पठित्वा स्वस्तिको परिपुष्पांजलि क्षिपेत् । श्रग्रे ऋषभदेव स्तुति पाठ: जगदवस्त पादपयोरुहं । नमित देवफरणे. महेश फरोशिनं । ललित दीधितिद्योतरसांतलं । भज मनोवृषभं जगदीश्वरं ॥१॥ - -- श्रथ पाठ सूचनिका -- प्रथम ही महिना का दिन तीसा तथा गुरणतीसा के हिसाव वरंष एक का दिन ३५४ तीन सौ चौवन होय । ति मध्य सत्ताइसवें दिन रोहिणी नक्षत्र भावै । ताहि दिन को उपवास' करे सो वरस एक और तीन दिन में तेरा वार रोहिणी । श्रावे सो तेरा ही वास करें । तदन्तर . मण्डल सहित साधर्मी जन संयुक्ता यथा शक्ति: उद्यापन करे। मण्डल रचना- सात पांखड़ी के मध्य वलय में कमल करें। ताहीं उपर सात कोठा बड़ा करें | त्याह में त्रयोदश प्रमित अर्थ चढावें । श्रव सन्देह निराकरण प्रश्नोत्तर लिखजै छै कि रोहिणी व्रत शास्त्रोक्त नहीं, सो साक्षि लिखने छ । वसुनंदि सिद्धान्त चक्रवर्ती उपासकाचार नामक ग्रन्थ मध्य ग्यारहवीं प्रतीमा का व्याख्यान में ऐसा लिखा है

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