Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 149
________________ Bisapanthi Dig. Jain Temple Granth Bhandar Nagaur [ 135 Extent: -26 Folios, 22 lines per page, 48 to 50 letters per Jice. Description ---Country paper, thin, smooth and white; Devanagari characters big, bold, clear and elegant hand-writing; borders ruled in two lines in red ink; red chalk and yellow pigment used; condition of the work is fair; it is a complete work, written in Hindi verse. Date of the Copy -Beshakha Badi 11, V.S. 1932 Subject :-CHARITRA .:Begins -श्री परमात्मने नमः । अथ श्रीपालरास लिख्यते ॥ -कल्पवेलि कवियरण तणी, सरसति करि सुसाय । सिद्ध चक्र गुण गांवतां पुर मनोरथ माय ॥१॥ अलि विघन सभी उप समें जपता जिन वो वीस । नमतां निजगुरु पयकमल जगमां बंधे जगोस ॥२॥ गुरु गौतम राज यही पाग्या प्रभु आदेश । श्रीमुख श्रेणिक प्रभू खनै इण परिधै उपदेश ॥३॥ उपगारी अरहंत सिद्धभजो भगवन्त । आचारिज उवज्जाय तिम साक्षुकल गुणवन्त ॥४॥ दरिसण दुरिलभ ज्ञान गुण चारित्र तप सुविचार । सिद्ध चक्ररा सेवतां पांमी जै भवपार ॥५॥ इण भव पर भवराद थी स्फसंपत्ति सुविसाल । रोग सोग रोख टले जिम नरपति श्रीपाल ॥६॥ पुर्व श्रेणिक राय प्रभू ते कुरण पुन्य पवित्र । इन्द्र भुलि तब उपदिसे श्री श्रीपालचरित्र ॥७॥ -तस विश्वास भाजन तस पुरण, प्रेम पत्रिक कहाया जी । श्री नय विजय बिबूधपय सेवक सूजस विजय उवजाया जी ॥ भाग थाकं तो कीहसे, तास वचन संकेत जी । ते बलि समकित दृष्टि नर जे, ते हतो रित हिते जी । ते भावे ए भरिणस्यै गुणस्यै, तसधर मंगल माला जी । वंधुर सुन्दर सिदुर मिंदर, · लहस्य ज्ञान वीसाला जी ॥ इति श्रीपालरास समाप्तम् ।। Scribal remarks : याय जी श्री कीर्ति विजयगणि शिप्योपाध्यायः । श्री विनय

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