Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan
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Sarasivati Bhawan Bada Mandir" Granth Bhandar
उदैसोहि दिउँ भीयाँ ए तीनिउ लघु भाई। 'टिहिड़ा गयरि वसन्त देल्ह चउबीसी गाई ।। हउँ तुम्हि गोरउ पुछिउ बुद्धि कहा महापाई ।
तेरहसइ इकहत्तरे संवच्छरू होई ।। .... मासु वसन्तु. अतीतउ अलखई तिज दिन होई ।
गुरुवासरू पणिज्जइ रोहिणि रिसु . गुंशोई ।। पढई पढावई णिसुणाइ, लिहि लिहा जो देई । भव समुदु सो उत्तरइ मोक्खपुरह सो जाइ ।
No. 2 .
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Ref. No. DHARMOPDESH PIYUSH Author BRAHAM NEMI DUTTA Size.
–104" x54 Extent."
'-41 Folios, 11 lines per page, 42 Letters per line. Description -Country paper very thin aud greyish; Devanagari char
acters in bold, clear and good hand-writing; borders ruled in 'four lines; it is a complete work, in satisfactory con
dition. Date of the Copy
Pretty Old Subject -ADHYATMA - Begins. -श्री सर्वज्ञं प्रणम्योच्चैः केवलज्ञानलोचनं ।
सद्धम्म देशयाम्येषं भव्यानां शर्महेतवें ॥ १॥ Ends -इत्थं श्री जिनभाषितं शुभतर धर्म जगद्योतक ।
सद्रत्नत्रयलक्षणं द्वितयगं देवेन्द्रचन्द्राचितं ।।
ये भव्या निजशक्तिभक्तिसहिताः संपालयंत्यादरात् । .. ..तें नाकींद्र नरेन्द्र चक्री पदवी भुक्त्वा शिवंयाति च ।। १६ ॥
गच्छे श्रीमति मूल' तिलके सारस्वतीये . शुभे विद्यानंदि गुरुप्रेपट्टकंमलोल्लासंप्रदो भास्करः ।
श्री भट्टारक मल्लिभूपणगुरुः सिद्धांतसिंधुर्महांस्तच्छिण्यो मुनिसिंहनदि सुगुरुर्जीयात् सतां भूतले ॥ १७ ॥ तेषां पादाज युग्मे निहितनिजमतिनर्मिदतः स्वशक्त्या भक्त्या शास्त्रं चकार प्रचुर सुखकरें श्रावकाचारमुच्यः ।

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