Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 128
________________ 114 ] Date of the Copy Subject Scribal remarks: स्वस्ति श्री संवत् १४६३ वर्षे माघकृष्णा चयोदश्यां सोमवासरे ग्रह श्री कालवी नगरे समस्त राजावली समालंकृत विनिजिताखिलि प्रचंड महाराजाधिराज सुरत्राण श्री महमूदसाहि विजय राज्यपर्वत माने अस्मिन् राज्ये श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगच्छे लोहाचार्यान्वये प्रतिष्ठाचार्य श्री अनन्तकीर्ति देवा तस्य पट्ट गगनांगणे भट्टारक कल्पाः श्री क्षेमकीर्ति देवाः तत्पट्टे श्री हेमकीर्ति देवाः तत् शिष्य श्री धर्मचन्द्र देवः तस्य धर्मोपदेशामृतेन हृदिस्थित मनोवल्ली सिच्यमानेनां रोहितास नगरे वास्तव्य श्री कालवीनगरस्थित श्रोतकान्वय मीत्तल गोत्रीय पूर्ण पुरुष साबु खेतनाम्नि तस्य वंसे दीवारण ठां० प्रसिद्ध सर्व कार्यकुशल साबु नयरण तस्य द्वौ भार्यौ कोकिला सांता नाम्नो एतेषां कुक्षे उत्पनः एकादश प्रतिमा धारकः ता सहजपाल हृद रति प्रति साधु श्री नरपति कुलमंडण साधु हेमराजी सा० नरपति भार्या साधु " नमिइ अन भी पत्र जिरणदास वील्हा वीरदास । सा० हेमराज पुत्र गणराज गुरुदास पुत्र साधु नरपति पुत्र साबु श्री वाल्हचन्द्र तस्य हो भार्यौ साबुनी जैणमाल ही लहुवड़ नाम्नि अनयो पुत्र साधु देवराज तस्य भार्या राव्ही नाम्नि एतयोः पुत्र पहचन्द एतैः जिनप्रणीत मार्ग रतैः चतुर्विध दानदायकैः संघनायकैः जिनपुजा पुरदंरैः एतेषां मध्ये साधु नइरंग पौत्रेण साधु नरपति पुत्रेण साबु श्री वल्हचन्द्र देवेन सावुनि जोगपाल ही लहुवडि कोतेन सावुराज जातेन पौत्र साधु श्री पाल्हण चन्द्र समुद्भवेन श्री समयसार पुस्तकं लिखाप्य संसार: समुद्रोतारणार्थं दुरितदुष्टं विध्वंसनार्थं ज्ञानावरणाद्यपृक कर्मक्षयार्थ श्री धर्महेतोः सुगुरोः धर्मचन्द्र देवेभ्यः पुस्तकदानं दत्त । No. 7 Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagan Author Extent Date of the Copy Subject -Mangsir Badi 13, V. S. 1463 -RELIGION SUKUMAL CHARITRA -BHATTARAKA SAKAL KIRTI - 44 Folios. Description - Country paper, thin brittle greyish; Devanagari characters. in bold, clear, uniform and clegant hand-writing; borders ruled in three lines in black ink, edges ruled in two lines;. the condition is very fair; it is a complete work; written in Sanskrit. Ref. No. 411 - Posa Sudi 10, V. S. 1537 -CHARITRA

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