Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan
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Pandya Lunkaran Jain Temple Granth Bhandar
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इति श्री जम्बूस्वामि चरि भं० सकलकीर्ति शिष्य ब्रह्मजिनदास विरचिते. विधुपर-: महामुनि सर्वार्थसिद्धि गमनो नामैकादशमः सर्गः ॥ ११॥ .. .. ... ... ... ... .....
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No. 3
PANDAVA PURANA Author - BHATTARAK SHUBHA CHANDRA Size . . . -103" x 5t" Extent: -184 Folios Description --Country paper, rough and greyish; Devanagri characters
in big, clear and good hand-writing; borders ruled in four lines in red ink, edges coloured red, red chalk and yellow pigment used; condition on the whole good, it is a
complete work, written in Sanskrit. .... : Date of the
Copy ivis. 1608 . -:. Subject - PURANA .. ... Begins --सिद्ध । सिद्धार्थसर्वस्वं सिद्धिदं .सिद्धिसत्पदं ।
.. ...प्रमाण नय-संसिद्ध . सर्वज्ञं मौमि सिद्धये ।। १ ।। -...:: :
वषभं वृषभं भांतं वृषभांक वषोन्नतं ।
जगत्सृष्टि विधातारं वन्दे ब्रह्माणामादिम् ॥२॥ ... . .. .चन्द्राभं चन्द्रशोभाढ्यं चन्द्राय॑ चन्द्रसंस्तुतं ।
. चन्द्रप्रभंसदाचन्द्रमीडे सच्चन्द्रलांछनं ।। ३ ।। : शान्ति .... शान्ते विधातारं सुशांतं . शातंकिल्विषम् । तन्नमामि निरस्ताऽघं मृगांक षोडशं जिनम् ॥ ४ ॥ नेमिर्धर्मरथेनेमिः शास्तु संशितशासनः ।
जगज्जगत् त्रयीनाथो निजितानंगसम्मदः ।। ५॥ --श्रीमद्विक्रमभूपतेxिकहते . स्पष्टाष्ट संख्ये शते
रम्येऽष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्र द्वितीयातिथी ।
श्रीमद्वाग्वर नीवृतीदमतुले श्री शाकवाटेपुरे .. श्रीमच्छ नीपुरधाम्नि च विरचितं स्थेयात्पुराणं चिरं ।। १८६ ॥: .. इति श्री पांडवपुराणे भारत नाम्नि भट्टारक श्री शुभचन्द्र प्रणीते ब्रह्म श्रीपाल
२.
'Ends
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