Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ 78 ] Jaiu Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur Begins -जिनं प्रणम्य नेमीशं संसारार्णवतारकं । ; .. __ रूक्मिणि चरितं दक्ष्ये भव्यानां वोधकारणं ।।। Ends --इति छत्रसेन विरचिता नरदेव कारापिता रूक्मिणि विधान कथा समाप्त । Scribal remarks : - सम्वत् १५१६ वर्षे श्रावण बुदी १५ श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भ०. श्री पद्मनंदि देवा तत्पट्टे भ० श्री शुभचन्द्रदेवास्तत्प? भ• श्री जिनचन्द्र देवा भट्टारक श्री.... पद्मनंदि शिष्य मुनि मदनकीति शिष्य ब्र० नरसिंह तिमित्त । खण्डेलवालान्वये दोसी गोत्रे संघी राजा भार्या देनु सुपुत्र छीछा भार्या गणीपुत्र कातु पदमा धर्मा आत्मकर्मक्षयार्थं इदं शास्त्रं लिखाप्य ज्ञान पात्राय दत्त। No. 10 VASUNANDI SHRAVAKACHAR Author -VASUNANDI Size -10"x41 Extent -22 Folios Description --Country paper, thin, and greyish; Devanagari characters in bold, clear and elegant hand-writing; the numbered sides marked with one small circular in the centre, border: ruled in two lines; it is a complete work, good condition; written in Prakrit. Date of the Copy -Bhadava Vadi 12, V.S. 1598 Subject -SHRAVAK DHARMA Scribal remarks : ___ सम्वत् १५६८ वर्षे भादवा बुदि १२ गुरु दिने पुष्प नक्षत्रे अमृतसिद्धिनाम उपयोगे श्रीपथस्थाने मूलसंधे सरस्वती गच्छे वलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री प्रभाचन्द्र देवा तस्य शिष्या मण्डलाचार्य धर्मकीर्ति द्वितीय मण्डलाचार्य श्री धर्मचन्द्र एतेषां मध्ये मण्डलाचार्य श्री धर्मकीति तत् शिप्य मुनि वीरनंदिने इदं शास्त्रं लिखापितं पं० रामचन्द्र ने प्रतिलिपि करके सं० १८६७ में पार्श्वनाथ (सोनियो) के मन्दिर में चढाया । ...: ---- ..

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167