Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 57
________________ Jivn Bai Jain Temple Granth : Bhandar: Scribal No. 4 -- जहां लग धुतारी डग है ता लग ससिसूर :जा लगिया पोथी सदा रह जो गुण भरपूर ।। १ ।। श्लोक-यादर्श - पुस्तकं दृष्टं तादृशं लिखतं मया दोषो न दीयते ॥ १ ॥ . यदि शुद्धमशुद्धः वा मम भग्न पृष्ठि कटि : ग्रीवा वनहिष्टिरधोमुखं कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ २ ॥ जलं रक्षेत् तैलैरक्षेत् स्थिबंधनः । मूर्ख हस्ते न दात्तव्यं एवं वदंति पुस्तिका ॥ ३ ॥ 15 इति श्री संपूर्ण । मिति फाल्गुण कृष्णपक्षतिथी ७ सोमवारे संवत् १८७६ का लिख्यतं माहात्माराधाकृष्ण सवाई जयपुर मध्यवासीत्कृष्णगढ का ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ KRIYAKOSHA KATHA BHASHA ---KISHAN SINGH' -11"x5" Ends Author Size Extent --116 Folios, 12 lines per page, 40 letters per line... Description ~~~Country paper, thin and greyish; Davanagari: characters in Date of the: Copyi Subject : Begins: bold, clear and good hand-writing; borders. ruled in three lines; the condition of the manuscript is satisfactory; it is complete work written in Hindi. :: :-V. S. 1795. -COMMENTARY. -- ॥ ॐ नमः सिद्धभ्यः ॥ श्रथ त्रेपन क्रिया कथा भाषाः बंध लिख्यते ।। दोहा :- समवसरण लछिमी: सहत, वरधमान जितराय | भविजन २५ नमीं विवुध वंदितः चरण जाकै : ग्यान परकास में लोक जिम समुद्ररिगंगा:: यपुर, जथा वृषभनाथ जिन श्रादिः दे • मनवाचकाया भाव व समकित काल कौं : सुखदायः ॥ १ ॥ : : मनंतः सभाव 1, नीर: दरसावः ।।२ ॥ पारसलौं : तेईस [43 धरि बंदी कर घरि सोस - ॥ ३ ॥ - शादि : जूत्त, प्रणम सिद्ध मंहत 11: थिति, लोके सिषरनिवसतः ॥ॐ श्री - अनंतानंत 1 - पंडेलीवाल वसं विशालं नागरचालं : देसथियं 14 धर्मप्रकास प्रराट कियं ॥ रामापुर वासंग देवनिवासं

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