Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 76
________________ 62 1 Scribal remarks: इति श्री वर्तमान चोवीस तीर्थकर पूजा जयमाल पंचकल्याणक पूजा वृदांवन कीर्ति : सम्पूर्णं । नथ कविनाम तथा शैलीनाम 'जनना तथा नग्रनाम तथा सहाई नाम |महरन छः ॥ काशीजी में काशीनाथ हूं जी; अनंतराम मूलचंद आदत सु राम जानियो । सज्जन अनेक तहाँ धर्मचंदजी को नन्दवृदावन अग्रवाल गोल गोती वानियो । तनि रचि या पाठ यमन्तलाल को सहाय बालबुद्धि अनुसार सुनो सर धानियो । तामें भूलचूक होय तथा शोध शुद्ध करो, जो मोहि अल्पज्ञ वनिछि मांडा श्रानियो ॥ इति सम्पूर्ण । लिखतं रामचन्द्र वामण वासी नायला का हाल सवाई जयपुर का संवत् १९४१ मी० आसाढ सूदी २ | No. 2 Author Size Extent Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur Date of the Copy Subject Begins V CHATURVINSATI PUJA -VRANDAVAN KIRTI -10" X 63" — 80 Folios, 11 lines per page; 28 to 30 letters per line. Description Country paper, rough and grey; Devanagari Characters in big, legible, bold and good hand-writing; borders ruled. in two lines; the condition of the manuscript on the whole is satisfactory; it is a complete work, written in Hindi. - V. S. 1922 -PUJA Réf. No. 77 - श्री महागणाधिप नमः । सिद्धि भाः श्रथ चतुर्विंशतीर्थंकर । पूजा. विद्वावनकृत लिखते । अथ नमस्कार ॥ वंदी पांचो परम गुरु, सुरु गुरु वंदत जाश विघ्न हरन मंगल करत पूरन परम प्रकाश - ॥१॥ Scribal remarks :: इति पाठ चतुर्विंशति जिनसंपूरणं ॥ लिखते चुनिलाल भावसां श्रावक खण्डेलवाल वासी बसवा का हाल जैन नगर वास सौगाण्या का मोहल्ला में संवत् १९२२ वैसाख सुदि १५ म लिखि ॥

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