Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan
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Jain Granth:Bhandars In Jaipur.& Nagaur..
अतीत " अनागत प्रतिमान वंदन : करी । देव भगवान । भयानाम भगोतीदास । प्रगट होऊ : तिहि ब्रह्म विलास ॥ १० ॥ वहुत - बात कहियै . कहायनी । यह - जीव.. त्रिभूवन को.धनी ॥ ११ ॥ प्रगट होय. जब केवल ग्यानाः । शुद्ध..... सरूप. बहै : भगवान ॥ १२ ॥
इति श्री ब्रह्म विलास सवैया भगौतीदास-कृत. सम्पूर्ण ॥ श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु ___ संवत् १७८२ का सादरण सुदि १०, शनिवार लिखतं महात्मा फकीरदास लवांरिणमध्ये ॥
No. 3
CHARCHA SAMADHAN Author Size —937x53" Extent —79 Folios; 1.1: lines per page,:48 to 50 letters per line Description -Country: paper, thih and. some. what. 'greyish; Devanagari
characters in bold legible and good-writing; the.condition : of the manuscript is satiifactory;- it is a complete work,
___ written in Sanskrit. . . Date of thers. Copy _V.S. 1879 Subject : --SHRAVAKACHAR .. Begins --ॐ नमः सिद्ध भ्यः। अथ चरचा समाधान लिखतं ..
दोहा-जयो वीर जिन': चन्द्रमा, : उदै अपुरब: जास
कलियुग : काल: पाप में. कीनो, तिमिरः विनासः वंदी वानी भगवती । बिमल, जौ:: ‘व्हजगमाहि भरम : ताप: जासौं : मिट। भवि. सरोज विंगसांहि । .. .. ... गोतम गुरु के पद : कमल हृदय 'सरोवर : मान..
नमौं नमौं निति : "भावसौ करि अष्टांग विधान ॥ ३ ॥ Ends' चौपई - जैन धरम कुल है: जगमांहि ।
विनिसेये सिंवदायक : नाहि । .. .. .. समझि". सोचि उर देखो भलै ।:: कोढि धरै धान नही .. फलः ॥ १५ ॥ अथ अवसां नमगल दोहा - . देव . राज पूजत चरन असरण सरण उदार । ..... ......
चऊ संग मंगल कर कुप्रिय. कारणी. कुर ॥१६॥ इति श्री चरचा समाधान ग्रंथ नाम चरचा १३ संपूर्ण ॥ .
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कोढि घर का"

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