Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ 44 ] Jain Granth Bhandar's In Jaipur & Nagaur संगही कल्याणं सवगुरगजागं गोत्रपाटणी सुजसलिये । पूंजी जिनराय श्र रंगुरपायं नमें संकलि जिनदान दियं ॥ ४७ ॥ तसु सुत दुय रावं गुरु सुख देवं लघुरौ श्राणंद सिंघ सुरणों । सुखदेव सुनदन जिन पद वंदन थान मांन किसने सुमरणों ॥ किसने इह कीनी कथा नवीनी निज हित चीनी सुरपदकी । सुषदाय क्रिया भनि इह मनवचतंनि सुद्धय लें दुरगति रद की ॥ ४८ ॥ दोहा - मधुर राय वसंत को जांने संकल जिहांन प्रधान सुत की तनुज, किसनस्यंध मन मांन ॥ ४६ ॥ तसु सुष लही । डिल्ल - पेत्र विपाकी कर्म उदै जव आइयो । निजपुर तजि के सांगानेर बसाइयो । तह जिन धर्म प्रसाद गमैं दिन सा घरमी जन सजन मांनदे हित गही ॥ ५० ॥ दोहा - इहि विचार मत प्रानियो, किया कथन विध सार | होइ चौपई बंधतो, सवजन को उपगार ॥ ५१ ॥ ... Scribal remarks: selese सत्रह संवत चौरासीया सुभादौ मास वरपा रित स्वेत तिथि पून्यों रविवार है संति विषरि विधृतिनाम जोग कुंभ ससिस्यंघ की दिने समफुरत अतिसार है ।। - दुढाहर देस जांन वसे सांगानेर थांन जैस्यंघ सवाई महाराज नीति धार है । ताके राजसमं परिपूरण की इह कथा भव्यन के हिरदै फुलासदैन हार है ॥ ६१ ॥ इस चोवन पैंतीस इकतीसा मरहटा पांचसय पांचसयवीस ठाने है । सातसय वाणवैसु चौपई छबीस छप्प पघडीपैंतीस तेरा सोरठा बखाने है । : 3 - डिल्ल वहतरि नाराच आठ मीता दस कुडंलीया तीन छह तेईसा प्रमाने है । द्रुतं तविलंबित च्यारि ग्राठ है भुजंगी तीन त्रोटक त्रीभंगी नवछंद एते आने है ॥६२॥ छंद कहै इस ग्रंथ मभारि लिए गति जे उकतंचघराई । दोई हजार महिल विधाटि पिच्यासी यराह प्रमान करा ही जो न मिले तुक अक्षर मात तदापुनरुक्त न दोष ठराही । तो मुझ को लपि दीन प्रवीन हे सो मति मैं तुम पाय परा ही ॥ ६३ ॥ ग्रंथ लिये इह लेपक कोइ कहे मरजादसि लोक किती है । छंदनि के सब अक्षर जोररूपद्धति अंक जु संधि तिती है ॥ ते सव वर्ण बंतीस प्रमांरण सिलोकनिकी गिरगती जूड़ती है । दोय हजार परी नवर्स लपि ले फूनि सुद्ध मती है ॥ ६४ ॥ छप्प — मंगल श्री सिध मंगल सिवदायक । - मावु गुरु 'लायक || अरहंत प्राचारिण. उवझाय मंगल

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167