Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 61
________________ Jobner Temple Granth Bhandar [ 47 रास रच्यू सती अञ्जना मह जूनी चउपई जोई रे । अधिक उछडं कह्य मुझ मिथ्या दोकड़ होई रे ॥ ... संवत् सोलह सतह सठि माहा शुदिनी बीज बखाणु रे । ...... सौवन गिरिरास मांझीउ जह सोलइ फरू जाणु रे ॥ तप गछ नायक गुण निलउ विजयसेन सूरी सरगाज हरे । आचारिज महिमा धणो विजदेव सूरी पद छाजई रे ।। तात पचाइणि दी पलु जस महिमा कीरति मरिडस । मातप्रेम लदे डरि धरया देव कई पाटणे अवतरिइ रे ।। विनय कुशल पंडित वरु परगारी गुरगदरिउ रे । चरण कमल सेवा लही शान्ति कुशाल इभ रास करिइ रे ॥ अविचल कीरति अञ्जना जा रवि सस हीउई आकाश रे । पढ़े गुणैइ जै सांभलई रहि लखिमी तस धर पासह रे ॥ ........ KRIYAKALPA TIKA Size -13"x5" Extent : . -91 Folios Description - Country paper, thick, rough and greyish; Devanagar: ... characters in bold and elegant hand-writing; borders ruled in four lines; the condition of the manuscript is satisfactory; it is a complete manuscript; language of the manuscript is Sanskrit. Date of the copy ... : . -Bhadava Vadi 5, v. S. 1539 Subject :-DHARMA Scribal remarks : : .. . राजाधिराज मांडीगढ दूर्गे श्री सुलतान गयासुद्दीन राज्ये 'चन्देरी देशे महाशेरखान. व्याप्रीयमाने वेसरे ग्रामे वास्तव्य कायस्थ पदमसी तत्पूत्र श्री राधी लिखतं । ..............

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