Book Title: Jaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Author(s): Premchand Jain
Publisher: University of Rajasthan

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Page 45
________________ Godha Jain Temple Granth Bhandar Date of the copy Subject Begins. Ends. Scribal remarks: No. 4 Author Size Extent '~~Fairly old -ACHARA SHASTRA - सर्वज्ञं सर्ववागीशं वीरं मारमदायहं । प्रणमामि महामोहशांतये मुक्तिप्राप्तये ॥ १ ॥ सारं यत्सर्वसारेषु वंघ यह पितेष्वपि । अनेकांतमयं वंदे तदर्हत् वचनं सदा ॥२॥ - यो नित्यं पठति श्रीमान् रत्नभालामिमां परा । स शुद्धचरणे नूतं शिवकोटित्वमाप्नुयात् ॥ Ends. इति श्री समन्तभद्र स्वामी शिष्य शिवकोट्टयाचार्य विरचिता रत्नमाला समाप्ता । Date of the copy Subject Begins. SUDARSHAN CHARITA -VIDYANANDI -10"X43" -77 Folios Description -Country paper thin, rough and greyish; Devanagari. characters in big, legible and good hand-writing; borders ruled in three lines; red chalk used; the condition of the manuscript on the whole satisfactory; it is a complete work written in Sanskrit. [ 31 - Bhadwa Vadi 11, V. S. 1665 --CHARITA Ref. No. 48 -- नत्वा पंचगुरुन् भक्त्या पचम् गतिनायकान् । सुदर्शनमुनेश्चारुचरित्रं रचयाम्यहं ॥१॥ येषां स्मरणमात्रेण सर्वेविघ्ना घना यथा । वायुना प्रलयं याति तान्स्तुवे परमेष्ठिनः ॥ २॥ - गांधारपुर्यां जिननाथगेहे छात्रध्वजाद्य: परिशोभिते श्रत्र । कृतं चरित्रं स्वपरोपकार - कृते पवित्र हि सुदर्शनस्य ॥ ४६ ॥ श्रीमूलसंघे वर भारतीये गच्छे बलात्कारगणेऽतिरम्ये । श्री कु कु दायनीन्द्रवंशे जातः प्रभाचन्द्र महामूनीन्द्रः ॥४७॥ 1.

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