Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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इस प्रकार जन साधारणके लिये यह पुस्तक उपयोगी प्रतीत हुई, तो दूसरे सस्करणमे – सस्कृत छाया और प्राकृत शब्द कोष भी जोड़ने का विचार है । सूक्तियो की प्रामाणिकता के लिये और मूल स्थान का अनुसंधान करने के लिये प्रत्येक सूक्ति के नीचे आगम-नाम, और अध्ययन का नंबर तथा गाथा का नवर तक दे दिया गया है । जिससे कि व्याख्यान देते समय और निबन्ध-लेख आदि लिखते समय सूक्तियो का समुचित उपयोग किया जा सके ।
पुस्तक में अनेक स्थानो पर विषय का पिष्ट-पेपण सा प्रतीत होता है, इसका कारण अनेक सूक्तियो की सदृग स्थिति है, जिससे कि विवशता है ।
पुस्तक के निर्माण करने मे श्री वीर वर्धमान श्रमणसघ के प्रधान जैनाचार्य पडितवर श्री आनन्द ऋपिजी महाराज के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री कल्याण ऋषिजी महाराज और मुनिश्री मुलतान ऋपिजी महाराज और महासतीजी प्रवर्तिनीजी श्री सायर कुवर महाराज का सहयोग और सहानुभूति प्राप्त रही है, अतएव इन सतो का मैं आभारी हूँ ।
यदि इनका कृपा - पूर्ण सहयोग नही होता तो पुस्तक इस रूप में शायद ही उपलब्ध हो सकती थी । मुनि श्री कल्याण ऋपिजी महाराज बाल ब्रह्मचारी है, विनयी है, साहित्यानुरागी है और भद्र प्रकृति के साघु है ।
इसी प्रकार मुनि श्री मुलतान ऋषिजा महाराज याग्य सलाहकार, दीर्घं - - दर्शी, विवेकी और व्यवहार कुशल है ।
जैनाचार्य कविवर श्री नागचन्द्रजा महाराज की भी समय समय पर उत्तम सलाहे प्राप्त होती रही है, अतएव उन्हे भी धन्यवाद है ।