Book Title: Jain Yog Granth Chatushtay
Author(s): Haribhadrasuri, Chhaganlal Shastri
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 9
________________ 'जैन योग ग्रन्थ चतुष्टय' के प्रकाशन का निर्णय गत वर्ष नोखा चान्दावतों के चातुर्मास में लिया गया। नोखा चान्दावतों का यद्यपि एक बहुत ही छोटा-सा ग्राम है, किंतु वहाँ के मूलनिवासी धनी-मानी धार्मिक व उद्यमी सज्जन बड़े ही उदार व उत्साही हैं । वि. सं. २०३७ का ऐतिहासिक वर्षावास नोखा में हो सम्पन्न हुआ। इस चातुर्मास में अनेक विशाल आयोजन व समारोह हुए। तपस्याएं हई । ज्ञान की सरिता बही। स्वर्मि-वात्सल्य का अनूठा उदाहरण देखने को मिला। वहाँ के मूल निवासी तथा दक्षिण-प्रवासी श्रावकों ने जो उत्साह व उदारता दिखाई वह वास्तव में चिर स्मरणीय रहेगी। इस चातुर्मास में उपप्रवर्तक शासनसेवी स्थविरवर स्वामी श्री ब्रज लालजी महाराज, युवाचार्य प्रवर श्री मधुकर मुनि जी म० व्याख्यान वाचस्पति श्री नरेन्द्र मुनि जी, तपस्वीराज श्री अभय मुनि जी, युवाकवि एवं गीतकार मुनि श्री विनयकुमार जी 'भीम' तथा विद्या विनोदी मौनसेवी श्री महेन्द्रमुनि जी 'दिनकर' आदि ठाणा ६ से विराजमान थे। तपस्वी श्री अभयमुनि जी ने मासखमण तप कर तपोमहिमा की, तो गुरुदेव श्री के प्रवचनों से प्रभावित समाज ने दानशील-तप-भाव रूप धर्म की विशेष गरिमा बढ़ाई । __ इस ग्रन्थ की संप्रेरिका विदुषीरत्न काश्मीरप्रचारिका महासती श्री उमरावकंवर जी 'अर्चना' तपस्विनी विदुषी स्वाध्याय रसिका सती श्री उम्मेदकंवर जी म. सती श्री कंचनकंवर जी म. सती श्री सेवावंती जी म. सतीश्री सुप्रभा जी म., सती श्री प्रतिभा जी म., सती श्री सुशीला जी म. एवं सती श्री उदितप्रभा जी म. आदि ठाणा आठ के ठाठ भी नोखा चातुर्मास की शोभा में चार चाँद लगारहे थे । गुरुदेव श्री के चातुर्मास की खुशी में ही नोखा श्री संघ के सदस्यों ने प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में उदारता पूर्वक सहयोग दिया। जिसकी सूची भी संलग्न है । ग्रन्थ के सुन्दर मुद्रण, संशोधन साज-सज्जा तथा श्लोकों की अकरादि अनुक्रमणिका, बनाने में साहित्य सेवी श्रीचन्दजी सुराणा का तथा श्री बृजमोहन जी जैन का सहयोग प्राप्त हआ। हम सभी सहयोगी सज्जनों के प्रति हृदय से आभारी हैं, तथा पाठकों के शुभ-मंगल हेतु यह ग्रन्थ उनकी सेवा में प्रस्तुत है मंत्री-मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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