Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 9
________________ ( ७ ) यश मिला । अहिंसा जैसे उच्च सिद्धान्त को जैनियो ने अपनी करनी द्वाग हास्यास्पद यना रक्वा था किन्तु आज उस सिद्धान्त का सच्चा जहर संसार को दिख गया। आज जैनधर्म के गर्व का दिन है। किन्तु जैन समाज को लजित होना पडता है। उच्च सिद्धान्तों का अपात्रों के हाथों में कहां तक अधःपतन हो सकता है, जैन समाज इस यात का जीता जागता उदाहरण है। हर्ष की बात है कि जैन समाज के इन दुदिनों का अव अन्त श्राया दिखाई देता है। हमाग ध्यान अव हमारे वीर पुरुषों के चरित्र खोज निकालने में लग गया है। इन चरित्रों के प्रकाश में आने से हमें दो लाभ होने की आशा है। एक तो पूर्वोक्त कलंक का परिमार्जन हो जायगा और दूसरे समाज पुनः अपने भृले हुए सच्चे आदर्श की ओर झुक जायगा। किन्तु अभी इस कार्य का श्रीगणेश मात्र हुश्रा है । जैनियों की पूरी 'वीर चरितावली' प्रकट होने में अभी विलम्ब है। वर्षों के प्रमाद से खोई हुई वस्तु घर ही में होते हुए भी शीघ्र हाथ नहीं लगती । उसको ढढ निकालने तथा वर्षों की मलिनता को धो मांजकर उसके प्रकृत निर्मल स्वरूप को प्रकट करने के लिये समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत पुस्तिका इस कार्य में दिक-प्रदर्शन का कार्य करेगी। इसमें पुराण-काल से लगाकर १५ वी १६ वी शताब्दि तक के अनेक जैनगज कुलों व वीर पुरुषों का निर्देश किया गया है। लेखक ने इसे जैन चोरी का इतिहास' नाम दिया है यह उनकी इस विषय में उच्च श्राकांक्षाओं का द्योतक है । मेरी समझ में अभी यह उस इतिहास की प्रस्तावना मात्र “जैन वीरों के इतिहास" की रूप-रेखा उपस्थित करना है। किन्तु पेले एक सर्वात

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