Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 38
________________ ( २१ ) जैनी होकर मुनि हो गया था ! भला, बताइये देश और श्रायेसंस्कृति के लिए किया गया, यह कितना महती कार्य था । X X किन्तु यहां तक के वर्णन से "भगवान महावीर" का कुछ भी परिचय प्रकट नही हुआ । श्रतः श्राइये उन युगवीर की पवित्र जीवनी पर एक नजर डाल लें। कुण्डग्राम के शातृ श्रथवा नाथ क्षत्रियों की ओर से वृजिराष्ट्रसद में भगवान महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ सम्मिलित थे । कहना होगा कि भगवान महावीर एक वीर राजकुमार थे। वृजिराष्ट्र के लिए न जाने उन्होंने क्या-क्या कार्य किय । वे कार्य तो उनकी विश्वविजयी प्रेम-सरिता में वह कर कहीं न कहीं के हो रहे । श्राज तो उनका नाम और काम श्रहिंसाधर्म के पूर्व प्रचा एक के रूप में पुज रहा है । श्राज महात्मा गान्धी जिस सत्याग्रह श्रत्र से नृशस राज्य को पलटने की धुन में व्यग्र हो कर स्वाधीनता की लडाई लड रहे है, वह अस्त्र जैनवीरों द्वारा बहुत पहले श्रज़माया जा चुका है। मनसा वाचा कर्मणा पूर्ण अहिंसक रहते हुए भी वह वीर दुर्दान्त शत्रु को परास्त करने में सफल हुए थे । यह मात्र उनके त्याग, तपस्या और सहनशीलता का प्रभाव था । भगवान महावीर को भी एक ऐसी लडाई का व्यर्थ ही सामना करना पड़ा था । राज-काज को छोड कर वह नन मुनि हो कर विचार रहे थे। उज्जैन के पास एक भयानक

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