Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 83
________________ ( E) कलङ्क की बात है। जैन पुरण अर जैन इतिहास-तो अनेक वीरगनानी के श्रादर्श-चरित्रों से भरे पड़े हैं। उन्हें यहां दुहरानेके लिये न अवसर ही है और न पर्याप्त स्थान ! ईतने पर भी कुछ चमकती हुई वीराङ्गनाथ का उल्लेख कर देना अनुचित,न १- सम्राट "रवारवेल की पत्नी-वजिरि भृमि के क्षत्रीराजकी कन्या थीं । जिस समय खारवेल विजिर-राजा के वैरियों से घमासान युद्ध करते हुये बेहद आहत हो रहे थे और उनकी सेना के पाँव उखड़ रहे थे, उस समय इस राजकन्या ने अपनी सहेलियों के जत्थे के साथ शत्रु पर श्राक्रमण करके उसके छक्के छुटा दिये थे! खारवेल की विजय हुई शत्रु भाग गया ! अन्ततः उनका ध्याह खारवेल से हो गया और गजरानी होकर इन्होंने जैनधर्म के लिए अनेक कार्य किये! . २-"इचप्या सरदार की'.पोती ने विजयनगर के राजाओं से.स्वतंत्र हो जरसय्या में राज्य किया था। तब से यहां कई वर्षों तक नियॉ ही राज्य करती रही। ये सब जैनधर्म की परमभक्त थी सत्रहवीं शताब्दि के. प्रारम्भ में यहां की अंतिम - रानी "भैरवदेवी" राज्याधिकारी थीं इन पर वेदनूर के राजा वेङ्कटप्य नायक ने 'अाक्रमण किया। रानी बड़ी बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुई ! 'कोमलाही ने अपना. सवला' नाम सार्थक कर दिया !, . . । ३-गजवंश में वीराङ्गना सावियचे प्रसिद्ध थीं। यह

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