Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 85
________________ उपसंहार । J 'यः शस्त्रवृत्तिः समरे रिपुः स्यात्, यः कण्टेको वा निज मंडलस्य । अस्त्राणि तत्रैव नृपाः क्षिपन्ति, न "दीन - कानीनं - शुभाशयेषु ।' - श्री सोमदेवाचार्प ! 'वीरवरो, अपनी तलवार को वहीं संभालो जहां राहण में युद्ध करने को सम्मुख हों अथवा उन देश कंटकों को अपने रास्ते में से साफ कर दो, जो देश की उन्नति में बाधक हो ! 3 1 किन्तु खवरदार, यदि तुम वीर हो तो दीन, हीन, और साधुआशय वाले लोगों के प्रति कभी भी शस्त्र न उठान ।' यह श्रादेश: जैनाचार्य का है, और इसकी सार्थकता गत- पृष्ठों के अवलोकन से स्वयं स्पष्ट है। जैनराष्ट्र में इस सात्विक वीरवृत्ति, } का सर्वथा पालन होता रहा । जैनों ने कभी भी अन्धाधुन्ध 1 t निरर्थक हिंसा को नहीं अपनाया । उनको सयमी और करुणा मई वृत्ति ने भारतीय वीरों में इन्हें अग्रणी बना दिया। नहीं - भला बताइये, वह कौन था जिसने मानव समाज पर करुणा करके उसे सभ्य जीवन विताना सिखाया और श्रसि-मसि - कृषि आदि कर्मों की शिक्षा देकर भारतीयों को एक श्रादर्श - राष्ट्र में --

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