Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 86
________________ ( २ ) संगठित किया ? क्या वह जैन तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव नहीं थे? र देखिये, अन्याय का नाश करने के लिये और धर्म का प्रचार करने के लिये जिन वीरों ने दिग्विजय की: क्या वह जैनतीर्थङ्कर शान्ति-कुन्थ-अरह नहीं थे ? तिस पर श्रात्मवल में पूर्व प्रकाश प्रदीप्त करने वाले वीर-रत्न भी जैन धर्म में एक नहीं अनेक हुये ! हिन्दू राष्ट्र में जहां अहिंसात्मक सत्याग्रह द्वारा आत्मवल प्रकट करने का मात्र एक उदाहरण विश्वामित्र और वशिष्ठ के युद्ध में मिलता है; वहाँ जैन तीर्थङ्करों और महा पुरुषों के एक से अधिक चरित्र इस आदर्श को उपस्थित करते थे। भला कहिये, ये सत्याग्रही वीर उत्पन्न करके जैन धर्म ने भारत की उन्नति की या अवनति ? .. इतना ही क्यो? सोचिये तो सही, वह कौन थे जिन्होंने देश की जननी जन्मभूमि को स्वाधीन बनाये रखने के लिये बडे से बड़े दुश्मन का सामना किया ? भारत की सीमा पर अपने र जमाते हुये विदेशियों को किनने मार भगाया ? अरे, किन्होंने यह शिक्षा दी कि पराधीन होने से मर जाना अच्छा है-'जीवितात्तु पराधीनाजीवानां मरणं वरम्' ? 'क्या यह जैनाचार्य की उक्ति नहीं है ? फिर ज़रा बताइये कि देशोद्धारक श्रेणिक, नन्दिवर्द्धन, चन्द्रगुप्त श्रादि क्या जैन नहीं थे और हाँ जीते जी शत्रु के हवाले देश को न करने वाले वीर, धनराज भला कौन थे? वह जैन थे-हमारे ही भाई थे। किन्तु दुःख आज हम उन्हीं के अनुचर न कहीं के हैं। लोग हमें और हमारे

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