Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 82
________________ ( ७६ ) युद्ध में बड़ी बहादुरी दिखाई थी और उसी युद्ध में वह धीरगति को प्राप्त हुए थे, किन्तु मुसलमान भी फिर कोङ्कण, में अधिकारी न रह सके थे। यह वीर जैनधर्म के भक्त थे और इनका सचित्र वीरगल्. गोत्रा में मौजूद है। इसके साथ ही विजयनगर राज्य की छत्रछाया में. अन्य जैन राज्य भी फलेफूले थे। १६-किन्तु सन् १५६५ के युद्ध में मुसलमानों ने विजयनगर साम्राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस समय प्रान्तीय जैन-शासक स्वतन्त्र हो गये थे। यह प्रधानतः तुलुवदेश में ही राज्य करते थे और इस प्रकार थे- .. ... (१) कारकल के भैरसू श्रोडियार, (२)-मूडविद्री के चौटर, (३) नन्दावार के बंगर, (४) अल्दनगड़ी के अल्दर, (५) चैलनगड़ी के भुतार और (६) मुल्की के सावनतूर। . . .. - जैनधर्म के पक्षपाती होने के कारण इन शासकों का युद्ध अन्य हिन्दू राजाओं से ठना ही रहता था। इनमें कई एक राजा बड़े पराक्रमी थे। . . . . ., - २०-"मैडूर के राजवंश" में भी जैनधर्मनुयायी अनेक वीर शासक हुये हैं । इनमें श्री चामराज, श्रोडयर, श्रीचिकदेवराय प्रोडयर, श्रीकृष्णराज श्रोडयर श्रादि. उल्लेखनीय हैं। इन्होंने जैनतीर्थ श्रवणवेलम्भ के लिए अनेक कार्य किए थे। वर्तमान मैसूर नरेश भी जैनधर्म से प्रेम रखते है।

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