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( २८ ) मैं यह बात प्रमुख है कि इन्होंने यूनानी वीर, सिकन्दर महान् के पीछे रहे प्रान्तीय यूनानी शासक को हिन्दुस्तान के सीमा, प्रान्त से मार भगाया था और भारतीय स्वाधीनता को अनुरण रक्खा था। इतना ही क्यों? किन्तु जब फिर सिल्यूकस नामक यूनानी बादशाह ने भारत पर आक्रमण किया, तो चन्द्रगुप्त ने उसे बुरी तरह हराया और सन्धि करने को बाध्य कर दिया। इस सन्धि के अनुसार चन्द्रगुप्त का राज्य अफ़गानिस्तान तक बढ़ गया और यूनानी राजकुमारी से उनका विवाह भी हो गया। इस प्रकार भारत और यूनान में गहन सम्बन्ध भी पहले पहल इनके राज्य में स्थापित हुआ और उनका यह सब गौरव जैनधर्म का गौरव है, क्योंकि वह जैनधर्म के भक्त थे।प्रख्यात्श्रुतकेवलीभगवान्भद्रवाहु के शिष्य थे।
आज चन्द्रगुप्त के जैनत्व को बड़े-बड़े ऐतिहास मानते हैं और विक्रमीय दूसरी-तीसरी शताब्दि के जैनग्रन्थ और सातवीं आठवीं शतान्दि के शिलालेख इस बात का समर्थन करते हैं। किन्तु इतने पर भी हाल में इसके विरुद्ध आवाज़ फिर उठी यह आवाज़ श्री सत्यकेतु विद्यालङ्कार ने उठाई है और वह चन्द्रगुप्त मौर्य को जैन चन्द्रगुप्त न मान कर उनके प्रपत्र सम्प्रति को जैन चन्द्रगुप्त मानते है । इसके लिए वह जैनग्रन्थो को पेश करते हैं। किन्तु जिन अर्वाचीन ग्रन्थों के आधार से वह इस निर्णय पर पहुँचे है, वह उनसे प्राचीन ग्रन्थों से
"देखो 'मौर्य साम्राज्य का इतिहास' पृ. ४१५-४२५
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