Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 52
________________ ( ३६ ) इसी के वंश में 'क्षत्रिय रुद्रसिंह' हुये थे। वह निस्सन्देह जैनभक्त थे। उन्होंने जूनागढ़ पर जैनों के लिए गुफायें और मठ वनवाये थे ! इस प्रकार जैनाचार्यों ने धर्म प्रभावना का वास्तविक रूप तव प्रगट कर दिया था ! इन यूनानी शक श्रादि जाति के शासकों को 'म्लेच्छ' कहकर अधृत नहीं करार दे दिया था: वल्कि उनको जैनी बनाकर धर्म की उन्नति होने दी थी ! यह जैनधर्म की वीर-शिक्षा का ही प्रभाव था कि जैनधर्म अपने प्रचार कार्य में सफल हुये थे। (१०) सम्राट विक्रमादित्य। सम्राट विक्रमादित्य हिन्दू संसार में प्रख्यात् हैं। पहले वह शैव थे। उपरान्त एक जैनाचार्य के उपदेश से वे जैनधर्म भुक्त हो गये थे। उनका समय सन् ५७ ई० पू० है और वह अपने सम्बत् के कारण बहु प्रसिद्ध है। अब इनके व्यक्तित्व को विद्वजन ऐतिहासिक स्वीकार करने लगे हैं और वे उनका महत्व शक लोगों को मार भगाने में बतलाते हैं। वात भी यही है! विक्रमादित्य मालवा के * इडियन एन्टीकरी भो० २० पृ ३६३ + काग्विज हिस्ट्री आल इण्डिया भो १ १६७-१६८ व पृष्ट ५३२

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