Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 76
________________ (६७) घंश नष्ट हो जायगा।" ददिग और माधव ने जैनाचार्य को इस आशा को शिरोधार्य किया और उनकी कृपा से राज्याधिकारी बन गये । यह ईसवी दूसरी शताब्दि की घटना है और पाठवीं शताब्दि में यह राजवश उन्नति की शिखर पर , पहुँच गया था। - गढ़वंश में "मारसिंहाराजा" यहुत प्रसिद्ध था। यह बडा पराक्रमी और.वीर था । इसने राठौड़राजा कृष्णराज तृतीय के लिये उत्तर भारत के प्रदेश को विजय किया था, इसलिये यह गुर्जर राज भी कहलाता था । किरातो, मथुरा के राजाओं, यनवासी के अधिकारी श्रादि को इसने रणक्षेत्र में परास्त किया था। नीलाम्बर के राजाओ को नष्ट करने के कारण यह "योलम्बकुलांतक" कहलाता था । इस प्रकार रणबांकुरा होने के साथ ही यह एक धर्मात्मा नर रत्न था। जैनधर्म प्रभाव के लिये इसने कई स्थानों पर मन्दिरादि वनवाये थे। अन्त में इसने यंकापुर जाकर श्री अजित सेनाचार्य के चरणों का श्राश्रय लिया था और यहों समाधिमरण किया था । "रायमल्ल चतुर्थ" इसके उत्तराधिकारी और इन्हीं के समान पराक्रमी और धर्मात्मा राजा थे। ___ उपरोक्त दोनों गगनरेश के मंत्री और सेनापति “वीरवर चामुण्डराय थे। यह ब्रह्म-क्षत्र कुलके भूपण थे और अपने रणकोशल एक राजनीति के लिये अद्वितीय थे इनकी आयु का बहुत भाग रणक्षेत्र में ही पीता था, पर तो भी यह धर्म और

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