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वंश में सत्याश्रय पुलिकेशी द्वितीय के समान प्रतापी राजा दूसरा नहीं था । ऐहोल के जैनमंदिर से इसका एक शिलालेख, मिला है । उसमें लिखा है कि 'महाराजाधिराज सत्याश्रय ने कौशल, मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र, लाट, कोकण, काञ्ची श्रादि देशों को अपने राज्य में मिलाया था। मौर्य, पल्लव, चोल, केरल श्रादि राजाओं को पराजित किया था ! जिन राजाधिराज हर्प के पादपों में सैकड़ों राजा नमते थे, उनको भी इसने परास्त किया । राष्ट्रकूट राजा गोविन्द को भी इसने हराया ! इस महान् वीर का कृपापात्र कवि कालि दास की बराबरी करने वाला जैन कवि "रविकीर्ति" था ।
यद्यपि
वी शताब्दि के मध्यभाग में राष्ट्रकूटों ने दक्षिण में चालुक्यों के राज्य की इति श्री कर दी थी, परन्तु दशमी शताब्दि के अंतिम भाग में चालुक्यों के तैल नामक राजा ने फिर उसकी जड़ जमा दी थी। इनमें "जयसिंह प्रथम " नामक राजा प्रसिद्ध है । बलिपुर में शान्तिनाथ भगवान की इसने प्रतिष्ठा कराई थी । जैनाचार्य वादिराज की इसने सेवा की थी ।
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३ – राष्ट्रकूट राजवंश प्रारंभ से ही जैधर्म का संरक्षक रहा है । इस वंश के प्रायः सबही राजाओं ने जैनधर्म को अपनाते हुये देश के लिये ऐसे ऐसे कार्य किये हैं, कि उनके लिये स्वतः मस्तक नत हो जाता है । यहां पर हम इस वंश के प्रख्यात् राजा श्रमोगवर्ष का परिचय कराना ही पर्याप्त समझते हैं ।
"अमोघवर्ष" गोविन्द तृतीय के पुत्र थे । शायद इनका
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