Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 72
________________ (६१) मानो उन्होंने अपने उदाहरण से हमारे सम्मुख उपस्थित कर दिया। (३५) दक्षिण भारत के जैनवीर। भगवान ऋपभदेव जी के पुत्र वाहुवलि' थे। उन्हें दक्षिण भारत का राज्य मिला था । पोदनपुर उनकी राजधानी थी। वह वॉके दिलावर वीर थे। 'सम्राट भरत' उनके सगे भाई थे, परन्तु उनका करद होना, उन्होंने क्षत्री पान के विरुद्ध समझा। भरत ने पोदनपुर को जा घेरा। दोनों ओर की सेनाएँ सजधज कर मैदान में प्रा डटी। युद्ध छिड़ने ही को था कि इसी समय राजमन्त्रियों की सुबुद्धि ने निरर्थक हिंसा को रोक दिया । मन्त्रियों ने कहा, राजकुमार परस्पर एक दूसरे के बलका अन्दाजा लगा ले, तो काम थोडे में ही निपट सकता है।' भरत ओर बाहुवलि को भी प्रजा का रक्त वहाना मंजूर न था। उन्हों ने मन्त्रियों की बात मान ली! प्रजा वत्सल वे दोनों नरेश असाडे में उतर पडे । मल युद्ध हुआ-नेत्र युद्ध हुआ'तलवार के हाथ निकाले गये पर किसी में भी भरत बाहुवलि को पगस्त न कर सके ! क्रोध में वह उवल उठे। भट अपना सुदर्शन चक्र भाई पर चला दिया। लेकिन वह भी कामयाव न हुश्रा | भरत को तरह क्रोध में वह अधा न था। कुल घात

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