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( २४ ) अमर है । अन्त में वह जैनमुनि हो कर मुक्त हो गये थे।
दूर-दूर दक्षिण भारत में भगवान महावीर के शिष्य तब मौजूद थे। जहाँ मलयपर्वत है, वहाँ पर तव हेमांगद देश था। वहाँ के राजा सत्यन्धर थे। उन्हीं के पुत्र राजकुमार जीवन्धर' थे। जैनशास्त्र इन्हें 'क्षत्रचूड़ामणि' कहते हैं। अब सोचिये, यह कितने वीर न होंगे। इन्होंने भारत में घूम कर अपने बाहुबल से अनेक राजाओं को परास्त किया था और अन्त में यह भगवान महावीर के निकट जैनमुनि हो गये थे।
मगध में श्रेणिक के बाद उनका पुत्र "अजातशत्रु" हुआ था। प्राचीन भारतीय इतिहास में यह एक प्रसिद्ध और पराकमी सम्राट के रूप में उल्लिखित है। इसने मगध साम्राज्य को दूर-दूर तक फैलाया था और उस समय के प्रमुख गणराज्य 'वृजिसद्ध' से लड़ाई लड कर उसे अपने आधीन कर लिया था। इसकी वीरता के सामने बड़े-बड़े योद्धा की काटते थे। भगवान महावीर ने इसी के राजकाल में निर्वाण पद प्राप्त किया था।
मल्ल, मोरिय आदि गणराज्यों में भी भगवान महावीर के। अनुयायी अनेक वीर पुरुष थे। किन्तु उपरोल्लिखित चरित्र ही उस समय के जैनवीरों के महत्व को दर्शाने के लिए पर्याप्त