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वरों के पवित्र चरित्रों से भरे हुवे हैं। हम नहीं चाहते कि उन्हीं चरित्रों को हम यहां दुहराएँ। हाँ, यह हम अवश्य कहेंगे कि वीरों के चरत्र विल्कुल अनूठे हैं-वह दूसरी जगह शायद ही मिले। इनमें से केवल एक-दो का परिचय करा देना तोभी हम आवश्यक समझते हैं।
किन्तु इन श्रात्म-विजयी वीरों के अतिरिक्त जैनो में अन्य कर्मवीरों की संख्या भी कुछ कम नहीं है। उन सब का पूर्ण परिचय कराना भी इस छोटी सी पुस्तिका में असम्भव है। तो भी हम संक्षेप में उनकी एक रूप-रेखा पाठकों के सामने उपस्थित कर देंगे। उसको देख कर वह लोग अवश्य ही आश्चर्यचकित हो जायेंगे जो जैनियों को अपने अहिंसा धर्म के कारण स्वप्न में भी तलवार छूने का विचार नहीं कर सकते। अन्यों की बात जाने दीजिये, स्वयं जैनियों में ऐसे अन्ध-भक्तों की आँखें इसको पढ़ कर चकाचौंध हो जायेंगी। जो अहसा के स्वरूप को नहीं जानते और पाप भीरुता को ही अहिंसा समझे बैठे हैं। उन्हें पता ही नहीं कि उनके लिए प्रारम्भी और विरोधी हिंसा तजन्य नही है। अपितु जैन शास्त्र तो उन्हें आदेश करते हैं कि उद्दण्ड शत्रु यदि युद्ध बिना नहीं माने तो उसका युद्ध ही इलाज है अर्थात् उसे रण-क्षेत्र में अच्छी तरह छका कर राह रास्ते ले श्रारो-उसके पाप परिणाम का नाश करदो। पर स्मरण रहे, कि स्वयं पाप अहङ्कार में न जा पड़ना । 'नीति वाक्यामृत के निम्न वाक्य इसी बात के