Book Title: Jain Veero ka Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 20
________________ 11 35 77: fag: || जैन वीरों का इतिहास ->+<x ( एक झलक ) ( १ ) प्राक्-कथन 'जैन चीरों का इतिहास' कितना फर्ण-प्रिय वाक्य है ! किन्तु जमाना इतना उच्छल हो चला है कि वह सहसा इस चाय के महत्व को जन साधारण के गले उतरने नहीं देता । प्राजकल ऐसे ही लोग यहुतायत से मिलते हैं, जो जैन धर्म' और जैनियों को भीरुता का श्रागार प्रकट करते हैं । हमें उनकी नासमझ बुद्धि पर तरस आता है ! सच बात तो यह है कि ऐसे लोगों ने जैनधर्म और जैन महापुरुषों के स्वरूप को ही नहीं पहचाना है । इस न पहचानने में सारा दोष हमारे इन पडोसी भाइयों का ही नहीं है; बल्कि स्वयं हम जैनियों का भी है । पयोंकि हम लोगों ने अभी तक वर्तमान के प्रचलित प्रचारउपायों का वास्तविक उपयोग नहीं किया है। हमें

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