Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Digambar Jain Parishad Publishing House View full book textPage 8
________________ नमः सिद्ध भ्यः। जैन तीर्थ और उनकी यात्रा। १. तीर्थ क्या है ? 'तृ' धातु से 'थ' प्रत्यय सम्बद्ध होकर तीर्थ' शब्द बना है । इसका शब्दार्थ है:-'जिसके द्वारा तरा जाय।' इस शब्दार्थ को गृहण करने से 'तीर्थ' शब्द के अनेक अर्थ होजाते हैं, जैसे शास्त्र, उपाध्याय, उपाय, पुण्यकर्म, पवित्रस्थान इत्यादि, परन्तु लोक में इस शब्द का रूढार्थ 'पवित्रस्थान' प्रचलित है। हमें भी यह अर्थ प्रकृतरूपेण अभीष्ट है, क्यों कि जैन तीर्थ से हमारा उद्देश्य उन पवित्रस्थानों से है, जिनको जैनी पूजते और मानते हैं। ___ साधारणतः क्षेत्र प्रायः एक समान होते हैं, परन्तु फिर भी उनमें द्रव्य, काल, भाव और भवरूप से अन्तर पड़ जाता है। यही कारण है कि इस युग की आदि में आर्य भूमि का जो क्षेत्र परमोन्नत दशामें था, वही आज हीनदशा में है । वैसे भी ऋतुओं के प्रभाव से काल के परिवर्तन से क्षेत्र में अन्तर पड़ जाता है। हर कोई जानता है कि भारत के भिन्न भागोंमें भिन्न प्रकारके क्षेत्र मिलते हैं। पंजाब का क्षेत्र अच्छा गेहूँ उपजाता है, तो बंगाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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