Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 10
________________ जैन तत्त्वज्ञान की रूपरेखा मानवीय जिज्ञासा जिज्ञासा मानव की ऐसी विशिष्ट मूल प्रवृत्ति है जो अन्य जीवधारियों से उसकी अलग पहचान बनाती है और यही मानव द्वारा अर्जित / उपार्जित समस्त ज्ञान-विज्ञान आदि का मूल स्रोत है । जिज्ञासा वृत्ति मानव की ही विशेषता है । छह माह का ही मानव शिशु चन्द्रमा की ओर लपकता है, आस-पास की वस्तुओं को उठा लेता है, उन्हें जानने पहचानने का प्रयत्न करता है । ३ साल का शिशु माता-पिता, अभिभावकों और बड़े भाई-बहनों के आस-पास जो भी वस्तु देखता है, ".. ( १ )

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