Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 24
________________ (३) आहार ग्रहण करता हो । (४) विसर्जन (Excretion) करता हो । (५) जागता हो। (६) नींद लेता हो। (७) परिश्रम करता हो—बिना किसी अन्य उर्जा के वह क्रियाशील रह सके । (८) आत्म-रक्षा के लिए प्रयास करता हो। (६) थकान महसूस करता हो । (१०) विश्राम की आवश्यकता अनुभव करता हो, और (१६) भय, त्रास, सुख-दुःख, हर्ष-विषाद आदि की अनुभूति उसे होती हो। यह सभी लक्षण जीव तत्व के हैं और जिसमें ये लक्षण न पाये जायें, वह अजीव तत्व है। दृश्य अथवा रूपी अजीव तत्व पुद्गल है; जिसे ( १५ )Page Navigation
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