Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 35
________________ आकर्षित होती हैं, जीव अथवा आत्मा के साथ एकाकार होने में प्रयत्नशील बनती हैं। कर्मपुद्गलों का आना ही आस्रव है। ___ यह आस्रव मुख्य रूप से पांच प्रकार का हैमिथ्यात्व आस्रव, (२) अविरति आस्रव, (३) प्रमाद आस्रव, (४) कषाय आस्रव, और (५) योग आस्रव । ___ यों विस्तार से इसके १७, २० और ५६ भेद भी हैं। ४. संवर तत्व यह तत्व आस्रव का विरोधी है। आते हुए कर्मों का रुक जाना, संवर है । इसके भी आस्रव के प्रतिपक्षी पाँच प्रमुख भेद हैं (१) सम्यक्त्व संवर, (२) विरति संवर, (३) अप्रमाद संवर, (४) अकषाय संवर, (५) अयोग संवर। . इनके अतिरिक्त १७, २० और ५६ भेद भी हैं। ( २६ )

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