Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल ये छह द्रव्य सृष्टि के अनिवार्य घटक हैं, जिनके आधार पर समस्त संसार की स्थिति है और यह संसार अर्थात् लोक अनादिकाल से है, वर्तमान में है तथा भविष्य में रहेगा । आगे जो आस्रव, संवर, पुण्य, पाप आदि तत्वों का वर्णन किया जा रहा है, उनके आधार भी जीव और अजीव - यह दो तत्व हैं । । ३. आस्त्रव तत्व संसारी जीव के मन-वचन-काय ये तीन योग होते हैं । इन तीनों योगों से वह शुभाशुभ प्रवृत्तियाँ स्वयं करता है, किसी अन्य को आज्ञा अथवा प्रेरणा देकर करवाता है और किसी अन्य द्वारा किये गये कार्य की प्रशंसा अथवा अनुमोदना करता है । जीव की यह सभी प्रवृत्तियां राग अथवा द्वेष मिश्रित होती हैं । इनके कारण पुद्गल वर्गणाएँ ( २५ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50