Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 46
________________ यही आत्मा का चरम लक्ष्य है, प्रत्येक भव्य आत्मा इसी स्थिति में पहुंचने के लिए प्रयत्नशील रहती है। उपसंहार जैन धर्म-दर्शन द्वारा वर्णित यह नव तत्व जीव की सम्पूर्ण यात्रा का अथ से इति तक ज्ञान तो कराते ही हैं, साथ ही छह द्रव्य की व्यवस्था द्वारा सृष्टि के स्वरूप का भी युक्तियुक्त विषचन करते हैं। इनके अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि संसार का आधार क्या है, तथा इसकी रचना किसी व्यक्ति अथवा शक्ति ने किसी एक निश्चित समय में नहीं की अपितु यह अनादिकाल से इसी प्रकार है और इसी प्रकार अनन्तकाल तक रहेगा। इस विश्व का कोई भी निर्माणकर्ता अथवा विध्वंसकर्ता नहीं है। ... आस्रव, बंध, पुण्य और पाप तत्व-इस तथ्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं कि आत्मा स्वयं ही ( ३७ )

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