Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 40
________________ (२) पानपुण्य - पात्र की शुभ भावों से जल आदि द्वारा तृषा तृप्त करने से । (३) लयनपुण्य - जरूरतमन्द को अनुकम्पा - पूर्वक स्थान देने से । (४) शयन पुण्य - पात्र (व्यक्ति) को विश्राम स्थल देने से । (५) वस्त्रपुण्य - जरूरतमन्द को दयापूर्वक वस्त्र दान करने से । (६) मन पुण्य - मन में प्राणीमात्र के प्रति शुभ भावना रखने से । (७) वचन पुण्य - - वचन से गुणीजनों का कीर्तन करने से तथा हित मित पथ्य वचन बोलने से और सभी के साथ मधुर वाणी के प्रयोग से । (८) कायपुण्य - शरीर द्वारा सेवा करने से | ( 8 ) नमस्कार पुण्य - सबके साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार करने से । ( ३१ )

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