Book Title: Jain Tattvagyan Ki Ruprekha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 32
________________ व्यवहार काल ढाई द्वीप अथवा मनुष्य क्षेत्र प्रमाण है। इसकी गणना भी 'समय' से की गई है और असंख्यात समयों की एक आवलिका होती है जो आधुनिक युग में प्रचलित समय की सबसे छोटीक इकाई सैकिंड का असंख्यातवाँ भाग है । आवलिका से आगे बढ़ते-बढ़ते घड़ी, मुहूर्त, प्रहर, अहोरात्र, ऋतु, अयन, वर्ष और युग तक की गणना की जाती है तथा संख्यात वर्षों तक यह गणना आगे बढ़ती है। इसके उपरान्त पल्योपम और सागरोपम उपमाकाल है । जिसकी गणना उपमा से की गई है. हालाकाल कहा गया है। कारह इम्म के कार्य है-(९) वर्तना, (३) परिणाग, (३) प्रिया (४) परस्य-अपरत्व । वर्तना-प्रत्येक पदार्थ की पर्याय बदलने में काल निमित्त बनता है, उसे वर्तना कहा जाता है। परिणाम का अभिप्राय प्रत्येक द्रव्य के परिणमन ( २३ )

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